12अप्रैल 2020 : आज जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस की महामारी की चपेट में है और इस महामारी से बचने के उपाय ढूंढ़ने में लगी हुई है वहीँ भारत में कुछ बुद्धिजीवी लोग अपनी -अपनी चिकित्सा पद्त्ति को स्रवश्रेष्ठ बताने में लगे हैं, यहाँ तक की टीवी प्रोगाम की डिबेट में भी ये लोग एक दूसरी चिक्तिसा पद्ति पर प्रश्न चिन्ह लगाने से नहीं चूकते ! वास्तव में ये बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है जहाँ इस मुश्किल वकत में सभी चिकित्सा पद्तियों को एक साथ आकर मिल कर काम करना चाहिए वहीँ आज भी हम एक दूसरे को निचा दिखने में लगें है। सब जानते है की कोई भी चिकित्सा पद्द्ति अपने आप में सम्पूर्ण नहीं और सभी की कुछ विशेषताएं व खामियें हो सकती है।
आयुर्वेदा को विश्व की सबसे पुराणी चिकित्सा पद्द्ति है, माना जाता है की आयुर्वेदा का इतिहास 5000 से भी पुराना है और आयुर्वेद का प्रमुख उद्देश्य स्वास्थ्य का रखरखाव और संवर्धन, बीमारी की रोकथाम करना है और अगर कोई व्यक्ति बीमार हो जाये तो उसका भी उपचार आयुर्वेदा ग्रंथों में बहुत ही विस्तार के साथ अंकित है। आयुर्वेद का मानना है कि पांच मूल तत्व “पंचमहाभूत” (आकाश , वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी) मानव शरीर में त्रिगुणों या त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) के रूप में जाने जाते हैं। बहुत सी रिसर्च व स्टडी ये साबित कर चुकी हैं की त्रिदोष सिद्धांत शरीर के स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसका प्रमाण देने की आवशकता नहीं। आयुर्वेदा जीवन जीने की एक सम्पूर्ण कला है जिसे हर व्यक्ति अपनी दिन चर्या में सुबह से शाम तक हर रोज अपनाता है।
आयुर्वेद केवल चिकित्सा की विकल्प प्रणाली ही नहीं है, बल्कि सकारात्मक स्वास्थ्य के मजबूत स्तंभों पर आधारित पुरे स्वास्थ्य देखभाल का एक विज्ञान है जिसमें इन चार पहलुओं की भूमिका है: भोजन , नींद, व्यायाम व कल्याण ।
आज के समय में जो भी नयी नयी बीमारियाँ सामने आती है उसका वर्णन आज से हजारों सालों पहले आयुर्वेदा के जनक – महर्षि चरक, महर्षि सुश्रुत व महर्षि वाग्भट ने अपने ग्रंथों – सुश्रुत संहिता, चरका संहिता, अष्टांग हृदयं, अष्टांग संग्रह, शार्ङ्गधरा संहिता, माधव निदानं व भावप्रकाश आदि ग्रंथों में अंकित किया है और इनकी प्रमाणिकता पर प्रश्न करना सरासर गलत है ! यहाँ ये कहना बिलकुल भी अनुचित नहीं की जो कुछ भी आयुर्वेदा के ग्रंथों में लिखा है वो देश, काल, ऋतू के अनुसार होता है,और आज के वातावरण व काल के अनुकूल आयुर्वेदिक उपचार में थोड़ा बहुत फेरबदल प्रकृति के अनुसार करना पड़ता है परन्तु उपचार का आधार इन ग्रंथों से ही रहता है और ये सब आपके अनुभव से ही पता चलता है जब मरीज आपके सामने होता है। तो इसी लिए ये जरुरी है की आयुर्वेदिक चिकित्सक को अपना निदान व उपचार पद्ति अंकित करनी चाहिए ताकि वो आयुर्वेदा के अनुसन्धान में काम आ सके। हम अपने पिछले 15 वर्षों के आयुर्वेद में चिकित्सा के अनुभव से कह सकते हैं की वास्तव में इन ग्रंथों में लिखा हर कथन उस पर 100 प्रतिशत खरा उतरता है बसर्ते की अगर आप सभी आयुर्वेदचार्य इन ग्रंथों में अंकित निदान व उपचार पद्ति का उचित पालन करें।
आयुर्वेदा में रिसर्च व अनुसन्धान होना चाहिए इसमें कोई दो राय नहीं परन्तु जो टाइम टेस्टेड प्राचीन वेद संदर्भ पहले से है उस पर तो सवाल नहीं उठाना चाहिए ! अब प्रश्न ये उठता है की इतने पुराना इतिहास व ग्रंथों में उल्लेखित होने के बावजूद क्यों हमारे ही देश का कुछ वर्ग आयुर्वेदा के ऊपर प्रश्न क्यों उठाता है और क्यों बार-बार इसकी वैधता व प्रमाणिकता पर प्रश्न चिन्ह लगता है ? इसके बहुत से कारण है ?
- संगठित होकर काम न करना : सबसे पहले तो इसका मुख्य कारण है सभी आयुर्वेदाचार्यों का एकसूत्र में संगठित न होना, हर कोई अपनी डफली अपना राग अलापता है। जिससे बात करो वही बोलता है की वो तो अपनी फार्मूलेशन बनाते है, पर कभी उस फार्मूलेशन को किसी दूसरे डॉक्टर से साँझा नहीं करेंगे, किसी दूसरे अपने आयुर्वेदाचार्य साथी का साथ नहीं देंगे सोचते हैं की कहीं वो हमसे आगे न निकल जाये । हर कोई अपने ही ढंग से चिकित्सा करने में लगा है, बिना किसी विश्वसनीय प्रोटोकॉल का पालन किये। यहाँ तक की आयुर्वेदा के विद्वान व अनुभवी वैद्य अपना ज्ञान को भी बाटने में संकोच करते है, समझ नहीं आता की ज्ञान बाटने से ये ज्ञान ख़त्म हो जाता है या उल्टा ज्ञान की वृद्धि होती है। क्यों नहीं हमारे अनुभवी और प्रख्यात वैद्यगण अपने अनुभव व आयुर्वेदा के टाइम टेस्टेड फार्मूलेशन आयुर्वेदा के छात्रों से साँझा करते या फिर आयुर्वेदा के शिक्षण संसथान क्यों नहीं इन अनुभवी और प्रख्यात वैद्यगण से ज्ञान प्राप्त कर पाते, कहीं न कहीं तो कुछ कमी है। अगर आज हर आयुर्वेदाचर्या अपनी व्यक्तिगत महत्वकांक्षा व संकीर्ण सोच को छोड़ कर एकजुट हो जाएँ और वास्तविक आयुर्वेदा चिकिस्ता पद्द्ति व इसके नियम को अपनाये व एक विशुद्ध शास्त्रीय प्रोटोकॉल का अनुसरण करे तो कोई भी आयुर्वेदा की प्रमाणिकता प्रश्न चिन्ह नहीं लगा पायेगा।
आयुर्वेदिक चिकित्सा पर ठोस या सख्त दिशा– निर्देशों का न होना : दूसरा सबसे बड़ा कारण है आयुर्वेदा पर कोई सख्त कानून का न होना और बिना किसी लाइसेंस या परमिशन के प्रैक्टिस करना- आज हर कोई तीन अक्षर – वात , पित और कफ पढ़ कर अपने आप को आयुर्वेदा का एक्सपर्ट बताता है , यहाँ तक की कोई बेसिक हेल्थ केयर स्टडी किये कुछ तथाकथित विद्वान सरेआम आज टीवी , यूट्यूब, फेसबुक के माध्यम से किसी भी बीमारी का आयुर्वेदा के नाम पे इलाज करने का दवा करतें है यहाँ तक की कुछ डोंगी लोग तो असाध्य बिमारियों जैसे- की कैंसर, पीते की पथरी , IBS, किडनी व् लिवर फेलियर आदि का जड़ से इलाज करने का भी दवा करते है और लोगों की सेहत से खिलवाड़ व उनके मेहनत की कमाई को हड़प रहें हैं। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा देश के लिए की ऐसे लोग आयुर्वेदा का मजाक बना रहे हैं और दिन पर दिन आयुर्वेदा की साख को तार-तार कर रहें है, वहीँ दूसरी और हमारी सरकार व आयुष विभाग आँख बंद करके तमाशा देख रहें है। सब कुछ GOVT के सामने होता है परन्तु कोई एक्शन नहीं। इन लोगों की वजह से आज एक आयुर्वेदचार्य जिसने 6 साल लगाए आयुर्वेदाचार्य बनने में परन्तु आज भी उसे अपनी चिकित्सा पद्ति की प्रामणिकता को साबित करना पढ़ रहा है और यहाँ तक की उसे अपनी जीविका कमाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है । ये दुर्भाग्य ही है हमारे देश का की कुछ संसथान एक से 6 महीने का कोर्स करवा के इन लोगों को झोला-छाप आयुर्वेदिक एक्सपर्ट्स का सर्टिफिकेट भी देते हैं और और सरेआम आयुर्वेदा की प्रैक्टिस करने को प्रोत्साहित भी करते है। यहाँ तक की कुछ ज्योतिषी, नैचुरोपैथ, थेरेपिस्ट, रिफ़्लेक्सोलॉजिस्ट आदि भी आज अपने नाम के आगे डॉक्टर (MD- Alternative Medicine) लगा कर टीवी या यूट्यूब पर बैठ कर ज्ञान देतें है जबकि इन्हे शारीरिक रचना ( Body Anatomy ), मानव शरीर और उनके कार्य तक का बेसिक ज्ञान भी नहीं होता और ये लोग सिर्फ कुछ बातें पढ़-रट कर लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ करते है। जब लोगों को इन दवाईओं से फायदा नहीं होता तो फिर ये लोग इसकी प्रमाणिकता पर सवाल उठाते है और इसका खामियाजा पुरे आयुर्वेदा जगत को भुगतना पड़ता है, बिना उचित आयुर्वेदा स्नातक स्तर की पढ़ाई के किसी को भी आयुर्वेदिक दवाईओं के बनाने , बेचने या ट्रीटमेंट का ज्ञान देने पर सख्त मनाही होनी चाहिए और इसके लिए सख्त कानून बनाना चाहिए ताकि आयुर्वदा की धरोहर को बचाया जा सके।
आयुर्वेदिक दवाईओं की गुणवत्ता: तीसरा सबसे बड़ा और गंभीर कारण है, आयुर्वेदिक दवाईओं के विनिर्माण व उत्पादन पर कोई सख्त कानून व दिशा निर्देशों का न होना ! आज जब पूरा विश्व आयुर्वेदा या वैकल्पिक उपचार को एक विकल्प की तरह देख रहा है और हर देश इसे वैधिकता दे रहा है वहीँ हमारा देश आज भी इसकी एहमियत नहीं समझ रहा और इसके ऊपर कोई सख्त कानून व दिशा निर्देश नहीं बना पा रहा ! आज कोई भी दूसरी इंडस्ट्री के लोग जो आयुर्वेदा का मूल सिद्धांत भी नहीं समझते है, वो आयुर्वेदा मेडिसिन के लिए निर्धारित मानको का पालन को पूरा किये बिना मैन्युफैक्चरिंग करने लगें हैं, यहाँ तक की उनके पास जरुरी संसाधन, प्रोडक्ट डेवेलोपमेंट, रिसर्च व टेक्निकल पर्सन तक भी नहीं होते जो की किसी भी आयुर्वेदिक मेडिसिन की प्रोडक्शन में सबसे जरुरी होता है। जैसे कालेजों ने फॉर्मेलिटी के लिए दिखाने के लिए स्टाफ रखा होता है वैसे ही बहुत से मैन्युफैक्चरिंग यूनिट ने सिर्फ पेपर में ही टेक्निकल पर्सन रखे होतें है, यहाँ तक कुछ फार्मेसी को तो बैच मैन्युफैक्चरिंग का रिकॉर्ड मेन्टेन करने तक का नहीं पता। यहाँ तक की कुछ फार्मेसी तो चंद मुनाफे के खातिर आयुर्वेदिक मेडिसिन के फॉर्मूले की मात्रा के साथ भी परिवर्तन करते है और लेबल पर कुछ सामग्री लिखते है और हकीकत में उतनी मात्रा डालते ही नहीं, जो की सरासर गलत और लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ है और इन कुछ लोगों की वजह से पूरी आयुर्वेदा इंडस्ट्री पर सवाल उठता है। आयुर्वेदिक डॉक्टरों को भी ऐसे उत्पादों का बहिष्कार करना चाहिए और सस्ते के चक्कर में प्रमोट करने या इन घटिआ उत्पादों की सलाह देने से भी बचना चाहिए क्योंकि अगर विशुद व विश्वशनीय आयुर्वेदिक दवाईयां बाजार में आएँगी तो लोगों का विश्वास आयुर्वेदा पर बढ़ेगा ! इसमें कोई दो राय नहीं है की आयुर्वेदा मेडिसिन का परिणाम 100% मिलता है बशर्ते की उसकी मात्रा व गुणवत्ता उचित हो । आयुर्वेदिक दवाईयों की गुणवत्ता को यकीनी बनाने लिए सबसे अहम भूमिका State Licencing Authority -आयुष विभाग की भी होती है और साथ ही स्टेट ड्रग लेबोरेटरी की जिनके पास सैंपल टेस्टिंग के लिए जातें है परन्तु दुर्भाग्य की बात है की हमारा सिस्टम इतना लाचार है की उनके पास न तो पुरे संसाधन है की ऐसी दवाईयों की गुणवत्ता की जाँच कर सकें और न ही उनके पास मैनपावर पूरी और कहीं हैं तो वो भी संविदात्मक आधार पर। जब तक आयुष विभाग को राज्य स्तर प्रयोगशालाएं हाई टेक टेक्नोलॉजी से सुसज्जित लेबोरेटरी नहीं मिलती तब तक दवाईओं की गुणवत्ता को यकीनी बनाना बहुत मुश्किल है, सरकार को इस पर सख्त दिशा निर्देश व ध्यान देना चाहिए !
एलोपैथ यानि की मॉडर्न मेडिसिन : दूसरी और एलोपैथ यानि की मॉडर्न मेडिसिन का भी आज के समय में बहुत ही मह्त्वपूर्ण रोल है और हम मॉडर्न सिस्टम ऑफ़ मेडिसिन की विषेशताओं को भी नकार नहीं सकते । आज विज्ञानं ने बहुत से अविष्कार किये और निदान और सर्जरी के अलग अलग आधुनिक उपकरण उपलब्ध करवाए जिसकी सहायता से आज किसी भी बीमारी का जल्दी पता लगाया जा सकता है और ये निदान उपकरण & सर्जरी तकनीक चिकित्सा जगत में बहुत ही महतवपूर्ण रोल अदा करतें हैं। पर इस भागती दौड़ती जिंदगी में हम मशीन के गुलाम बन गए और आज आधुनिक युग में जहाँ टेक्नोलॉजी और आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस ने प्रगति की है उसके साथ-साथ ही ये टेक्नोलॉजी हमारे लिए समस्याएं भी लेकर आयी जैसे की दिन पर दिन बढ़ती बीमारियां जैसे कैंसर, हार्ट अटैक, किडनी फेलियर या फिर सड़क दुर्घटनाएं, इन सब की इमरजेंसी की स्थिति में मॉडर्न सिस्टम ऑफ़ मेडिसिन ही एक मात्र विकल्प है। हालाँकि अधिकांश मॉडर्न दवाएं रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से निर्मित होती हैं जिनके बहुत से साइड इफ़ेक्ट होते हैं, और इनकी प्रमाणिकता का दावा किया जाता है की इन दवाईओं का मानव से पहले पहली दूसरी स्टेज में पशुओं पर परीक्षण किया जाता है, परन्तु पशुओं पर किये गए परीक्षण भी 100% विश्वसनीय नहीं हो सकते, रॉयल सोसाइटी ऑफ मेडिसिन के जर्नल में प्रकाशित एक लेख में भी इस दावे का मूल्यांकन किया है और निष्कर्ष निकाला है की जानवरों पर किये गए अधिकांश प्रयोग मानव स्वास्थ्य के लिए प्रासंगिक नहीं हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (USA) ने नोट किया है कि जानवरों के परीक्षणों में सुरक्षित और प्रभावी दिखने वाली सभी दवाओं में से 95 प्रतिशत मानव परीक्षणों में विफल होती हैं क्योंकि वे काम नहीं करती हैं या खतरनाक हैं। अंत में निष्कर्ष यही निकलता है की हर चिकित्सा पद्द्ति अपने आप में सम्पूर्ण नहीं है और सभी की अपनी विषेशताएं व खामियें हैं। दूसरी स्टज में ब्लाइंड फोल्ड रिसर्च होती है जहाँ इन मेडिसिन का प्रयोग बिना बताये कुछ सिमित लोगों पर किया जाता है परन्तु क्या इस सिमित लोगों पर की गयीब्लाइंड फोल्ड टेस्टिंग १००% प्रमाणित या विश्वसनीय है ? ये भी चर्चा का विषय है, क्योंकि अगर ये 100% प्रमाणित और विश्वसनीय होती है तो फिर कई बार मार्किट से ये मेडिसिन वापिस क्यों मंगाए जाती है या उसके दुस्प्रभाव क्यों होती ? तो कहने का मतलब यही है की हर किसी System of Medicine की कुछ न कुछ सीमाएं हैं !
आज इस वक्त जब किसी भी देश के पास कोरोना वायरस का कोई इलाज नहीं, तो जरुरत है हर चिकित्सा पद्द्ति को एक साथ मिलकर काम करने की, केंद्रीय सरकार को चाहिए सभी पैथियों के अनुभवी विद्वानों की एक राष्ट्रीय टास्क फार्स का गठन करें जो प्रोटोकॉल के अनुसार मिलकर काम करें और ये सुनसिचित करे की कैसे सभी पैथियों की सहायता लेकर इस मुश्किल घडी में एकजुट होकर इस कोरोना महामारी को हम परास्त कर सकतें है और भारत को आयुर्वेदा चिकित्सा जगत में विश्व गुरु बनाए का मार्ग प्रस्त किया जा सके। जहाँ आयुर्वेदा कुछ कर सकता है वहां आयुर्वेदा का प्रयोग हो, जहाँ होमियोपैथी का रोल हो वहां होमियोपैथी का प्रयोग हो और जहाँ एलोपैथ की जरूरत हो वहां एलोपैथ का सहारा लिया जाये।
हमारा ये भी सुझाव है की आयुर्वेदा भारतीय चिकित्सा पद्द्ति है और अपनी ही चिकित्सा पद्द्ति को अगर प्राइमरी शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये तो बच्चे बचपन से ही इसकी महत्वता को समझ सकते हैं व अपने जीवन में उसका पालन करके बिमारियों से बच सकते हैं। इससे हेल्थ केयर के नाम पे होने वाले पड़े पैमाने पर खर्च के बजट को भी कंट्रोल किया जा सकता है । क्योंकि अगर हम बिमारियों की रोकथाम करने में सफल हो जातें है तो बिमारियों के इलाज का खर्चा बचेगा । आयुर्वेदा का उदेश्य भी हमें बिमारियों से बचाना ही है ।
वैधानिक अस्वीकरण: इस रिपोर्ट को पब्लिश करने का हमारा मकसद किसी भी योग्य चिकित्सक या पैथी पर सवाल उठाना नहीं बल्कि अयोग्य व डोंगी लोगों द्वारा आयुर्वेदा के नाम पे हो रहे खेल को उजागर करना है। अगर हमारी इस रिपोर्ट से किसी भी व्यक्ति या व्यक्ति विशेष को कुछ ठेस पहुंची हो तो कृपया ऐसे लोग हेल्थ के साथ खिलवाड़ न करें, आयुर्वेदा की महत्वता को समझे और उचित और वैधानिक तरीके से आयुर्वेदा का प्रसार प्रचार करें। अगर आप के पास भी कोई ऐसी जानकारी या सुझाव है तो कृपया नीचे कमेंट बॉक्स में लिखे या फिर अपने आर्टिकल ऊपर दिए गए लिंक पर सबमिट करें । हिंदी टाइपिंग में त्रुटि के लिए खेद