चंडीगढ़ 30.6.2021: आज की भागती दौड़ती दुनिया में इन्सान एक मशीन बन गया है और अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए और आधुनिकता की चकाचौधं में इस हद तक चला गया की अपनी महत्वाकांक्षा के लिए प्रकृति से भी समझौता कर लिया ! सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो ये है ये जो शरीर भगवान ने हमें दिया हम उसकी भी कदर न करके एक मशीन की तरह बर्ताव करने लगे ! हजारों वर्षों पहले की इतनी प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्द्ति “आयुर्वेद” व अपनी भारतीय संस्कृति व सभ्यता को भूल कर हम आज की आधुनिकता के वश में हो कर रह गए ! आज न हमारे खान पान का को कोई समय और न दिन चर्या का कोई पालन सही से पालन करता है , और इसका परिणाम हमारे सामने है कोरोना जैसी महामारी या ऐसी कितनी भयंकर बीमारियां हमें अपने जंजाल में फंसाती जा रही है- ये जानकारी दीप आयुर्वेदा की फाउंडर- डॉ बलदीप कौर ने दी!
क्या होती है रोगप्रतिरोधक क्षमता और इसे कैसे बढ़ाएं
डॉ बलदीप कौर ने कहा की कोरोना वायरस का सबसे जयादा असर उन लोगों में हुआ जिनकी इम्युनिटी यानि रोग प्रतिरोधक क्षमता कम थी या जो किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त थे , यहां बात जननी बहुत महत्वपूर्ण है की रोगप्रतिरोधक क्षमता किसी केमिकल या कृत्रिम दवाईओं से कभी नहीं बन सकती, अगर हम आयुर्वेद के मूल सिध्दांत को अपना लें और अपने खान पान और लाइफ स्टाइल में थोड़ा सा भी बदलाव कर लें तो रोगप्रतिरोधक क्षमता नेचुरल तरीके से ही बढ़ जाएगी और हम बीमार ही नहीं होंगे और स्वस्थ जीवन जियेंगे !
कोरोना का टिका क्या करता है शरीर में ?
कोरोना के टिके का भी काम शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करना है न की ये कोरोना का कोई उपचार है ! कोरोना के कृत्रिम व बहुत ही कम असर वाले वायरस इस टिके में होते है जो शरीर में लगने के बाद हमारे शरीर की रक्षा प्रणाली सक्रिय हो जाती है, इसी लिए जिनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता काम होती हैं होने कुछ बुखार या कुछ कमजोरी महसूस होती है क्योंकि टिका लगने के बाद शरीर की जायदातर शक्ति कोरोना वायरस के मृत प्रतिरूप से लड़ कर शरीर में एंटीबाडी बनाने में लगती है और जिनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है उन्हें इस टिके के लगने के बाद भी कुछ महसूस नहीं होता ! वहीँ आयुर्वेद हमारे शरीर की रक्षा प्रणाली को मजबूत करने में बहुत ही महतवपूरण भूमिका निभाता है और अच्छी बात ये है की आयुर्वेद हमारे रसोई से ही शुरू हो जाता है बस जरूरत है अपने नजदीक के किसी अनुभवी व बोर्ड प्रमाणित आयुर्वेदाचार्य से सलाह लेकर आयुर्वेद को अपने जीवन में अपनाने की !
स्वास तंत्र कोविड मे सबसे ज्यादा प्रभावित-
डा. बलदीप कौर ने ये भी बताया की आज ये बताने की आवश्यकता नहीं है की कोरोना वायरस का सबसे जयादा असर हमारी स्वसन प्रणाली पर हुआ और जयादातर रोगियों में फेफड़ों का संक्रमण पाया गया जो की बहुत ही गंभीर समस्या है ! फेफड़े हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक हैं, जो पूरे शरीर में प्रत्येक कोशिका में शुद्ध ऑक्सीजन के प्रवाह को सुनिश्चित करते हैं, गैसों का आदान-प्रदान, ऑक्सीजन के साथ कार्बन डाइऑक्साइड फेफड़ों की सतह पर एल्वियोली में होता है, और यदि यहाँ बलगम , टार , फेफड़ों में फ्री रेडिकल्स या अन्य जहरीले पदार्थ जमा हों , तो फेफड़ों की काम करने की क्षमता प्रभावित होती है। आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ व्यक्ति को भी अपने शरीर को शुद्ध करना चाहिए ताकि शरीर से विषैले कण बाहर निकल सकें और हम बीमारियों से बच सकें और स्वस्थ रह सकें , अगर फेफड़ों में रेशा , बलगम, या जेहरीले पदार्थ जमा होंगे तो उनकी काम करने की क्षमता पर असर पड़ता है ! आज हवा दूषित है, खानपान की चीजों में भी विषाक्त कण है यहाँ तक की धूम्रपान न करने वालों के फेफड़ों को भी आज धूम्रपान करने वालों जितना नुक्सान हो रहा है ! आयुर्वेद के अनुसार हर स्वस्थ व्यक्ति को अपने शरीर की शुद्धि करते रहना चाहिए ताकि शरीर से विषाक्त कण बाहर निकलते रहें और हम बिमारियों से बचें रहें, अब बात आती है की शरीर की शुद्धि कैसे हो तो उसके लिए आयुर्वेद में बहुत ही संक्षेप में उपाय दिए गए है, जैसे की पंचकर्म थेरेपी वमन और विरेचन, नेति क्रिया आदि ! इसी क्रम में आयुर्वेद की कुछ ऐसी जड़ी बूटियां भी है जिनका सेवन करके भी हम अपने शरीर की शुद्धि कर सकतें है परन्तु इसके लिए आयुर्वेदिक वैद्यों के सलाह से ही करना चाहिए !
अभी तीसरी लहर में वायरस के डेल्टा अवतार के लक्षण भी मिलने शुरू हो गए तो ऐसे में ये बहुत ही जरुरी हो जाता है की हम सभी को अपने स्वसन प्रणाली को मजबूत करना चाहिए ताकि वायरस का असर फेफड़ों पर न हो, इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए विश्विख्यात आयुर्वेदिक संस्थान दीप आयुर्वेदा के डॉक्टर बलदीप कौर व उनकी टीम ने एक ऐसा आयुर्वेदिक फार्मूलेशन का निर्माण किया जो की हमारे स्वसन तंत्र पर काम करते हुए फेफड़ों की शुद्धि करके उनको मजबूती देने में मदद करती है ! इस आयुर्वेदिक औसधि काम नाम है ” स्वासनी लंग्स डेटॉक्स फार्मूला”
फेफड़ों की शुद्धि व स्वास तंत्र की मजबूती के लिए आयुर्वेदिक औषधि “स्वासनी”
डॉ बलदीप कौर ने बताया की स्वासनी बजे में उपलब्ध अन्य औषधियों से बिलकुल अलग है क्योंकि ये १००% स्तव से बनाई गयी है और इसकी फार्मूलेशन में कृत्रिम रंग , खुसबू , केमिकल , अल्कोहल या फ्लेवर्ड सीरप का इस्तमाल नहीं किया गया ये १००% नेचुरल है ! इसका उपयोग छोटे बच्चों से लेकर वृद्धों तक किया जा सकता है और वो भी बिना किसी दुष्प्रभाव के ! स्वासनी फेफड़ों से गंदगी व जमी हुई बलगम या रेशे को बाहर निकाल कर कोशिकाओं के पुनःनिर्माण में मदद करती है ! उन्होंने बताया की आज ये समय की जरुरत है और हर किसी को आयुर्वेद को अपना कर बिमारियों से बचना चाहिए ! आज हम जल्दबाजी के चक्कर में केमिकल युक्त ड्रग लेकर अपने शरीर का नुक्सान कर लेते है और बाद में हॉस्पिटल के चक्कर लगा कर अपनी पूरी जिंदगी की पूंजी हॉस्पिटल में लगाने पर मजबूर हो जाते है ! दिप आयुर्वेदा के सीईओ विष्णु दत्त शर्मा ने बताया की स्वासनी आज पुरे भारत में उपलब्ध करवाई जा रही है और बहुत ही जल्द हम आयुष मंत्रालय व स्वास्थ्य विभाग से भी गुजारिश करेंगे की स्वासनी को कोरोना वायरस से बचाव के प्रोटोकॉल में शामिल किया जाये ताकि जन-जन तक इसका फायदा पहुँचाया जाये और लोग विशुद्ध आयुर्वेद की महत्वता को समझे ! क्योंकि आयुर्वेद बीमारी को ठीक करने के लिए तो है ही परन्तु हम बीमार ही न हो उसके लिए पहले है तो नया सोचो आयुर्वेद सोचो !
सटीक उपचार न होते हुए भी एलोपैथी में प्रयोग फिर आयुर्वेद को उतना मौका क्यों नहीं ?
कोविड-19 की इस महामारी में जहाँ एलोपैथी में भी कोरोना का कोई सटीक व शोध आधारित इलाज नहीं था, लेकिन फिर एलॉपथी चिकित्सा जगत ने कोरोना के इलाज के लिए अलग अलग बिमारियों के लिए मौजूद दवाईयों व थेरेपी का उपयोग कोरोना के लिए किया जैसी की हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन , रेमेडिसीवर , डॉक्सीसाइक्लिन /अज़िथ्रोमैकिन व एन्टीपैरेटिक ड्रग्स या फिर प्लाज्मा थेरेपी आदि ! लेकिन कुछ समय बाद इन सब दवाईओं या थेरेपी को स्वास्थ्य विभाग व WHO ने अपने प्रोटोकॉल से बाहर कर दिया ! इसमें कोई संदेह नहीं की एलोपैथी आपातकालीन या सर्जरी के लिए बेहतरीन चिकित्सा पद्द्ति है परन्तु सेहत संभाल व क्रोनिक बिमारियों के लिए आयुर्वेद बहुत ही अद्भुत रोल अदा करता है ! डॉ बलदीप कौर ने कहा की यहाँ हम सब को एक बात समझनी बहुत जरुरी है की वायरस दुनिया में कोई नई चीज नहीं है ये तो पहले से ही हमारे शरीर में या वातावरण में वर्षों से मौजूद है और कहा जाता है की ये कभी ख़तम नहीं होते परन्तु अगर हम अपनी भारतीय धरोहर आयुर्वेद को अपनी जीवन में अपना ले तो बहुत हद तक कोरोना वायरस या इस जैसी अन्य वायरस के हमले से बच सकते है ! दुनिया आयुर्वेद को सिर्फ दादी नानी के नुस्खों तक ही सिमित समझना गलत है, जबकि हकीकत में ये एक सम्पूर्ण प्रामाणिक विज्ञानं है जो की हजारों वर्षों पहले हमारे ऋषि मुनियों व विद्वानों द्वारा जहां अध्ययन व शोध पर आधारित है ! आयुर्वेद के ग्रंथों जैसे की शुश्रुत संहिता, चरक संहिता , अस्टांग संग्रह , भैषज्यकल्पना आदि में सम्पूर्ण मानव जात्ति ही नही, यहाँ तक की पशु पक्षियों के बारे में भी रोग निदान का समुचित विवरण दिया गया है ! तो आज आयुर्वेद को किसी प्रमाणिकता की आवश्यकता नहीं है, हाँ ये जरूर है की आयुर्वेदिक उत्पाद की गुणवत्ता व प्रभावकारिता के लिए अनुसन्धान होने चाहिए ताकी पूरी दुनिया आयुर्वेद को मुख्य चिकित्सा पद्धती में शामिल करे ! और साथ ही आयुर्वेद के नाम पे हो रही लूट के लिए भी सरकार को सख्त कानुन बनना चाहिए क्योंकी आज कोई भी कीवह भी उत्पड बंकार आयुर्वेद के नाम पे बेचना शुरू कर देता है बिना किसी उचित व clinical परिक्षण के !